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रिटायरमेंट की तैयारी कर रहे हैं राष्ट्रपति शी जिनपिंग? राजनीतिक भविष्य को लेकर अटकलें तेज

बीजिंग: चीन के राष्ट्रपति शी जिनपिंग 12 साल से अधिक समय से चीन में अपनी सत्ता बरकरार रखे हुए हैं। लेकिन अब जिस तरह का घटनाक्रम सामने आ रहा है उससे कुछ अलग ही संकेत मिल रहे हैं। पहले तो उनके गायब होने की खबरें आईं। अब वे अपने शासनकाल में पहली बार सत्तारूढ़ कम्युनिस्ट पार्टी के प्रमुख संगठनों को अधिकार सौंपना शुरू कर रहे हैं। शी के इस कदम से अटकलें लगाई जा रही हैं कि वे व्यवस्थित सत्ता हस्तांतरण के लिए आधार तैयार कर रहे हैं या संभावित रिटायरमेंट की तैयारी के तहत अपनी भूमिका को कम कर रहे हैं।  कम को लेकर नए नियमों की समीक्षा  शी के सत्ता हस्तांतरण के बारे में अटकलें तब तेज हुईं जब सरकारी समाचार एजेंसी ‘शिन्हुआ’ ने हाल ही में बताया कि सत्तारूढ़ कम्युनिस्ट पार्टी ऑफ चाइना (सीपीसी) के शक्तिशाली 24-सदस्यीय राजनीतिक ब्यूरो ने 30 जून को अपनी बैठक में पार्टी के संस्थानों के काम को लेकर नए नियमों की समीक्षा की। शी की अध्यक्षता में हुई बैठक में इस बात पर जोर दिया गया कि ये नियम सीपीसी केंद्रीय समिति की निर्णय लेने वाली, विचार-विमर्श करने वाली और समन्वयकारी संस्थाओं की स्थापना, जिम्मेदारियों और संचालन को और अधिक मानकीकृत करेंगे।  शिन्हुआ की खबर में कहा गया है कि ऐसी संस्थाओं को अपने प्रमुख कार्यों के संबंध में नेतृत्व और समन्वय को लेकर अधिक प्रभावी प्रयोग करने चाहिए और प्रमुख कार्यों की योजना बनाने, चर्चा करने और देखरेख करने पर ध्यान केंद्रित करना चाहिए। नाम सार्वजनिक नहीं करने की शर्त पर चीन में रहने वाले एक राजनीतिक विश्लेषक ने कहा कि पार्टी के इन निकायों के लिए निर्धारित किए गए नियम शी के रिटायरमेंट की तैयारी का संकेत हो सकते हैं।  कुछ शक्तियां दूसरों को सौंप सकते हैं जिनपिंग हांगकांग के न्यूज पेपर ‘साउथ चाइना मॉर्निंग पोस्ट’ ने रविवार को विश्लेषक के हवाले से कहा," सत्ता परिवर्तन के लिहाज से यह महत्वपूर्ण समय है, लिहाजा हो सकता है कि निकायों को विनियमित करने के लिए ये नए नियम बनाए गए हैं।” हालांकि, दूसरे विशेषज्ञों का कहना है कि सीपीसी के संस्थापक माओत्से तुंग के बाद सबसे शक्तिशाली नेता माने जाने वाले शी खुद कुछ बड़े मुद्दों पर ध्यान केंद्रित करने के लिए कुछ शक्तियां दूसरों को सौंप सकते हैं।  ब्रिक्स शिखर सम्मेलन में भी हिस्सा नहीं लिया ‘यूनिवर्सिटी ऑफ कैलिफोर्निया सैन डिएगो’ में चीनी अभिजात्य राजनीति और वित्त मामलों के विशेषज्ञ विक्टर शिह ने कहा कहा, "ऐसा प्रतीत होता है कि शी जिनपिंग शायद दिन-प्रतिदिन के विवरणों पर कम ध्यान देते हैं, जिसके लिए एक निगरानी तंत्र की आवश्यकता है।” शी ने रविवार से रियो डी जेनेरियो में होने वाले ब्रिक्स शिखर सम्मेलन में भी भाग नहीं लिया। राष्ट्रपति बनने के बाद यह पहला मौका है जब वे उभरती अर्थव्यवस्थाओं के शिखर सम्मेलन में भाग नहीं लेंगे। शिखर सम्मेलन में चीन के प्रतिनिधिमंडल का नेतृत्व प्रधानमंत्री ली कियांग कर रहे हैं।  अमेरिका के साथ टैरिफ युद्ध के बीच उठाया कदम शी ने सत्ता सौंपने का कदम ऐसे समय उठाया है जब अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने टैरिफ युद्ध शुरू कर दिया है, चीन का अमेरिका को होने वाला 440 अरब डॉलर का निर्यात बाधित हो रहा है। इसके अलावा चीनी अर्थव्यवस्था भी कई चुनौतियों का सामना कर रही है। अर्थव्यवस्था में निरंतर सुस्ती के कारण विकास में गिरावट आ रही है। इसके अलावा आर्थिक विकास का मुख्य आधार आवास बाजार कमजोर हो रहा है।  शी जिनपिंग का अब तक का कार्यकाल कैसा रहा? साल 2012 में सीपीसी के महासचिव बनकर सत्ता संभालने के बाद से शी सत्ता के केंद्रों यानी पार्टी, राष्ट्रपति पद और केंद्रीय सैन्य आयोग (सीएमसी) के अध्यक्ष के रूप में शक्तिशाली सेना पर अपनी पकड़ को तेजी से मजबूत किया है। इससे पहले शी उपराष्ट्रपति थे। सत्ता पर अपनी पकड़ मजबूत करते हुए उन्होंने चीन का सबसे बड़ा भ्रष्टाचार विरोधी अभियान चलाया जिसमें दस लाख से अधिक अधिकारियों को दंडित किया गया और दर्जनों शीर्ष जनरलों को पदों से हटा दिया गया। इस दौरान शी को पार्टी का "मुख्य नेता" घोषित किया गया जबकि इससे पहले यह पद केवल पार्टी के संस्थापक माओत्से तुंग को ही दिया गया था। बाद में, किसी राष्ट्रपति के पांच-पांच साल के दो कार्यकाल के प्रमुख नियम को विधायिका ने संशोधित किया, जिससे 2022 में पार्टी के महासचिव के रूप में और अगले वर्ष देश के राष्ट्रपति के रूप में उनके अभूतपूर्व तीसरे पांच-वर्षीय कार्यकाल के लिए चुने जाने का मार्ग प्रशस्त हुआ। शी के सभी पूर्ववर्ती दो पांच साल के कार्यकाल के बाद सेवानिवृत्त हो गए, जबकि वह बिना किसी कार्यकाल सीमा के सत्ता में बने रहे और उन्हें आजीवन राष्ट्रपति का तमगा मिला। विश्लेषकों का कहना है कि सत्ता में बने रहने या सत्ता में भागीदारी करने की उनकी योजना 2027 में होने वाली सीपीसी की अगली पंचवर्षीय कांग्रेस से पहले या उसके दौरान आने की उम्मीद है, तब तक उनका तीसरा कार्यकाल समाप्त हो जाएगा।

दुर्गावती टाइगर रिजर्व पर शिकारियों और तस्करों की हमेशा निगाह बनी रहती, उनपर नजर रखने 650 कैमरे, 35 वॉच टॉवर, 40 पेट्रोलिंग कैंप

दमोह  बारिश के मौसम को देखते हुए अन्य टाइगर रिजर्व की तरह वीरांगना दुर्गावती टाइगर रिजर्व को आगामी तीन महीने के लिए पर्यटकों के लिए बंद कर दिया गया है। इस दौरान रिजर्व क्षेत्र में शिकारियों की गतिविधियों और अन्य संदिग्ध हरकतों पर नजर रखने के लिए प्रबंधन ने सुरक्षा व्यवस्था को और सख्त कर दिया है। वन्यजीवों की बढ़ी गतिविधियों को ध्यान में रखते हुए टाइगर रिजर्व के भीतर 650 से अधिक ट्रैप कैमरे लगाए गए हैं, जिनकी मदद से हर मूवमेंट की निगरानी की जा रही है। इसके अलावा क्षेत्र में 35 वॉच टॉवर, 40 पेट्रोलिंग कैंप और 300 से अधिक सुरक्षा कर्मियों को तैनात किया गया है।  गश्त के लिए टीमें दिन और रात ड्यूटी पर हैं। संवेदनशील क्षेत्रों में सुरक्षा और चौकसी को विशेष रूप से बढ़ाया गया है। टाइगर रिजर्व का सबसे महत्वपूर्ण हिस्सा नौरादेही क्षेत्र है, जहां सबसे अधिक सुरक्षा संसाधन लगाए गए हैं। यहां 35 वॉच टॉवर, 650 ट्रैप कैमरे, करीब 40 पेट्रोलिंग कैंप और एक हाथी कैंप के साथ 300 से अधिक सुरक्षाकर्मी लगातार निगरानी में जुटे हैं। दरअसल एक जुलाई से सभी टाइगर रिजर्व पर्यटकों के लिए बंद हो जाते हैं और एक अक्तूबर को ही खुलते हैं। यह समय बाघिनों के प्रजनन के लिए माना जाता है और कीचड़ होने के कारण जंगल में घूमना मुश्किल होता है। इसलिए टाइगर रिजर्व को बंद रखा गया है। इसी अवधि में शिकारी भी सक्रिय हो जाते हैं। इसलिए ऐसे समय प्रबंधन को सुरक्षा व्यवस्था मजबूत करनी होती है। दमोह में अब भी अधूरी व्यवस्थाएं टाइगर रिजर्व के तहत आने वाले दमोह वनमंडल में फिलहाल 30-35 सुरक्षाकर्मी तैनात हैं और कुछ ट्रैप कैमरे भी लगाए गए हैं, लेकिन इस क्षेत्र में वायरलेस स्टेशन जैसी सुविधाएं अब तक तैयार नहीं हो सकी हैं। अधिकारी मानते हैं कि यहां सुरक्षा इंतजामों को और मजबूत किए जाने की जरूरत है। प्राकृतिक संपदा पर बुरी नजर 2339 वर्ग किमी क्षेत्र में फैले इस रिजर्व में 24 बाघों समेत 250 से अधिक जीव-जंतुओं की प्रजातियां, 90 से अधिक प्रकार के पेड़, 49 तरह की झाड़ियां, 30 प्रकार की घास और 15 तरह की बेल-लताएं पाई जाती हैं। यही वजह है कि इस जैव विविधता पर शिकारियों और घुसपैठियों की नजर बनी रहती है। अधिकारियों की अपील रिजर्व प्रबंधन ने आमजन से अपील की है कि वे इस बंद अवधि में टाइगर रिजर्व की ओर न जाएं और गाइडलाइन का पालन करें, ताकि वन्यजीवों की सुरक्षा और पर्यावरण संतुलन बना रहे। टाइगर रिजर्व के डिप्टी डायरेक्टर डॉ. एए अंसारी का कहना है मानसून को ध्यान में रखते हुए ट्रैप कैमरे, गश्त व निगरानी के जरिए सुरक्षा व्यवस्था मजबूत की गई है। हर गतिविधि पर नजर रखी जा रही है। 

वनतारा प्रबंधन उज्जैन के प्रस्तावित चिड़ियाघर को वन्यजीव देने पर पूरी तरह सहमत, अधिकारियों का दल 11 जुलाई को करेगा भ्रमण

उज्जैन   मध्य प्रदेश में पालपुर कूनो राष्ट्रीय उद्यान और गांधी सागर अभयारण्य के बाद अब चिड़ियाघर में भी चीते देखे जा सकेंगे। राज्य सरकार उज्जैन में प्रस्तावित चिड़ियाघर में चीता बसाने की तैयारी कर रही है। इसके लिए गुजरात के जामनगर स्थित रिलायंस के वनतारा सेंटर से मध्य प्रदेश सरकार चीता सहित अन्य वन्यप्राणी ला सकती है। प्रदेश के अधिकारियों का दल वनतारा जाएगा और वहां की व्यवस्थाओं का अध्ययन करेगा। दरअसल, पिछले दिनों मुख्यमंत्री डॉ. मोहन यादव वनतारा गए थे। उन्होंने वहां व्यवस्थाओं को देखा था। वहां का अनुभव मध्य प्रदेश के अधिकारियों के साथ साझा किया। उन्होंने कहा कि वनतारा प्रबंधन मध्य प्रदेश को वन्यजीव देने पर सहमत है। वनतारा में 48 चीते हैं मुख्यमंत्री ने यह भी निर्देश दिए कि मप्र वन विभाग के अधिकारी वनतारा रेस्क्यू सेंटर का भ्रमण कर हाथी प्रबंधन, विलुप्तप्राय प्रजातियों के संरक्षण माडल, मानव-वन्यजीव द्वंद्व कम करने के प्रबंधन का अध्ययन करें। बता दें कि वनतारा में 48 चीता हैं। इन्हें दुबई व दक्षिण अफ्रीका से लाया गया था। 11 से 13 जुलाई तक वनतारा का अध्ययन करेंगे वन अधिकारी मप्र के वन अधिकारी 11 जुलाई से 13 जुलाई तक वनतारा रेस्क्यू सेंटर का अध्ययन करेंगे। वन विभाग के अपर मुख्य सचिव अशोक वर्णवाल, वन बल प्रमुख असीम श्रीवास्तव, मुख्य वन्यप्राणी अभिरक्षक सुभरंजन सेन एवं अन्य अधिकारियों का दल 10 जुलाई को रवाना हो जाएगा। 80 हेक्टेयर में होगा विकसित मुख्यमंत्री डॉ. मोहन यादव के गृह जिले उज्जैन में 300 करोड़ रुपये की लागत से 80 हेक्टेयर में चिड़ियाघर-सह-सफारी बनाया जाएगा। इस परियोजना के लिए 25 करोड़ रुपये की प्रारंभिक राशि मंजूर की गई है। विस्तृत परियोजना रिपोर्ट के अनुसार बाघ, सफेद बाघ और तेंदुआ, चीता सहित बड़े मांसाहारी जानवरों के लिए 47 अलग-अलग बाड़ों के साथ-साथ छोटे मांसाहारी, शाकाहारी, पक्षी, प्राइमेट, सरीसृप, एक तितली गुंबद, एक मछलीघर, एक बचाव केंद्र और एक पशु चिकित्सा अस्पताल की योजना है। इसका प्रस्ताव भारत सरकार को भेजा गया है। चीता समेत कुछ अन्य जीव भी लाए जा सकते हैं     अधिकारियों का दल 11 जुलाई को जामनगर के वनतारा रेस्क्यू सेंटर का अध्ययन करने जाएगा। वहां जाकर देखेंगे कि किस तरह वन्यजीवों को रखा जाता है। उनकी देखरेख, खानपान से लेकर हर बिंदु का अध्ययन करेंगे। वहां से चीता समेत कुछ अन्य वन्यजीव मप्र लाए जा सकते हैं। हम इसकी संभवनाएं देखेंगे। – सुभरंजन सेन, मुख्य वन्यप्राणी अभिरक्षक, मप्र।  

इंदौर के पश्चिमी रिंग रोड के निर्माण पर NHAI ने साफ किया, 90 % किसानों को मुआवजा मिलने के बाद ही निर्माण कार्य शुरू होगा

 इंदौर  इंदौर में शिप्रा से पीथमपुर नेट्रेक्स तक बनने वाली 64 किलोमीटर लंबी पश्चिमी रिंग रोड के निर्माण कार्य में अब और देरी तय है। किसानों को बढ़ी हुई मुआवजा राशि तो मंजूर हो गई है, लेकिन उनके बैंक खाता नंबर और एफआईसी कोड अब तक पूरे नहीं हो पाए हैं। भारतीय राष्ट्रीय राजमार्ग प्राधिकरण (एनएचएआई) ने साफ किया है कि 90 प्रतिशत किसानों को मुआवजा मिलने के बाद ही सड़क निर्माण शुरू किया जाएगा। अब तक जिले में 30 प्रतिशत किसानों के खाता नंबर ही एकत्रित हो सके है। ऐसे में बरसात बाद ही निर्माण एजेंसी की मशीने काम शुरू कर सकेगी। करीब एक साल पहले दो अलग-अलग एजेंसियों को इस सड़क का निर्माण कार्य सौंपा गया था। लेकिन किसानों के विरोध और जमीन अधिग्रहण की मुआवजा राशि में खामियों के चलते काम शुरू नहीं हो पाया। पहले इस परियोजना के लिए करीब 600 करोड़ रुपये का मुआवजा तय हुआ था, लेकिन किसानों के विरोध और शासन के निर्देश के बाद कलेक्टर आशीष सिंह ने नई गाइडलाइन के अनुसार मुआवजा बढ़वाया। अब यह राशि बढ़कर करीब एक हजार करोड़ रुपये हो गई है। जमीनों का सर्वे कर 26 मई को अवार्ड पारित कर दिए गए और 25 जून को एनएचएआइ ने फंड भी जारी कर दिया।अब तक किसानों जिले के 998 किसानों के खाता नंबर नहीं मिल सके है। इंदौर जिले की तीन तहसीलों की स्थिति 795 करोड़ इंदौर जिले में मिलेगा मुआवजा 570.5678 हेक्टेयर जमीन होगी अधिग्रहित 472.0545 हेक्टर नीजी जमीन 98.5133 हेक्टेयर शासकीय जमीन 998 किसानों की जमीन होगी अधिग्रहित 90 प्रतिशत जमीन मिलने पर शुरू होगा कार्य एनएचएआइ के प्रोजेक्ट डायरेक्टर सुमेश बांझल का कहना है कि 90 प्रतिशत जमीनों का स्वामित्व मिलने के बाद ही पश्चिम रिंग रोड का निर्माण कार्य शुरू होगा। इसके लिए किसानों के खाता नंबर और एफआइसी कोड मांगे जा रहे है, ताकि उनके खाते में सिंगल क्लीक पर राशि जारी की जा सके।एसडीएम द्वारा किसानों के खाता नंबर पोर्टल पर डालने के बाद विभाग इनकी जांच कर राशि जारी कर देता है। इंदौर जिले में 795 करोड़ मुआवजा एनएचएआइ के प्रोजेक्टर डायरेक्टर बांझल के अनुसार इंदौर जिले की तीन तहसीलों के 26 गांवों में 998 किसानों को 795 करोड़ रुपये का मुआवजा मिलेगा, जबकि धार जिले की पीथमपुर तहसील में करीब 200 करोड़ रुपये का मुआवजा पारित हुआ है। इंदौर जिले में सांवेर तहसील को सबसे ज्यादा 473 करोड़ रुपये मिलेंगे। सांवेर के 9 गांवों के 512 किसानों को यह रकम दी जाएगी। देपालपुर के 5 गांवों के 153 किसानों को 140 करोड़ और हातोद तहसील के 12 गांवों के 333 किसानों को 182 करोड़ रुपये का भुगतान किया जाना है। 570 हेक्टेयर से अधिक जमीन पश्चिम रिंग रोड के लिए इंदौर जिले में 570.5678 हेक्टेयर निजी जमीन और करीब 98.5 हेक्टेयर शासकीय जमीन अधिग्रहित होगी। पहले मुआवजा पुराने गाइडलाइन पर दिया जा रहा था, लेकिन अब औसत खरीदी-बिक्री दर के हिसाब से राशि तय की गई है।इससे किसानों में नाराजगी भी दूर हुई है और अब जमीन अधिग्रहण का रास्ता साफ हो गया है। खाता नंबर लेने का काम किया जा रहा है     किसानों से उनके खाता नंबर लेने का कार्य किया जा रहा है। अब तक 30 प्रतिशत किसानों के खाता नंबर प्राप्त हो चुके हैं। जल्द ही सभी किसानों के खाता नंबर लेकर पोर्टल पर दर्ज किए जाएंगे। जिले में 333 किसानों के खाता नंबर लिए जाना है। पटवारी इसके लिए किसानों से संवाद कर रहे है। – रबी वर्मा, एसडीएम हातोद  

स्व-सहायता समूह की महिलाओं की निजी भूमि पर विकसित की जाएगी फलोद्यान बगिया

प्रदेश में पहली बार पौधरोपण के लिए अत्याधुनिक तकनीक का किया जाएगा उपयोग  ऐप के माध्यम से महिला हितग्राहियों का होगा चयन 15 अगस्त से एक बगिया माँ के नाम अंतर्गत शुरू होगा पौधरोपण स्व-सहायता समूह की महिलाओं की निजी भूमि पर विकसित की जाएगी फलोद्यान बगिया भोपाल  मुख्यमंत्री डॉ. मोहन यादव के नेतृत्व में प्रदेश की स्व-सहायता समूह की महिलाओं को आर्थिक रूप से सशक्त बनाने के लिये प्रदेश सरकार द्वारा महात्मा गांधी नरेगा अंतर्गत “एक बगिया मां के नाम” परियोजना शुरू की गई है। इसके अंतर्गत स्व-सहायता समूह की महिलाओं की निजी भूमि पर फलोद्यान की बगिया विकसित की जाएगी। प्रदेश में ऐसा पहली बार होगा जब अत्याधुनिक तरीके पौधरोपण का कार्य किया जाएगा। ऐप के माध्यम से हितग्राहियों का चयन किया जाएगा। परियोजना के क्रियान्वयन को लेकर मनरेगा परिषद ने तैयारी शुरू कर दी है। पंचायत एवं ग्रामीण विकास विभाग द्वारा इस संबंध में निर्देश भी जारी किए गए हैं। “एक बगिया मां के नाम” से होगा ऐप “ एक बगिया मां के नाम” परियोजना का लाभ लेने वाली आजीविका मिशन के स्व-सहायता समूह की महिला का चयन “एक बगिया मां के नाम” ऐप से किया जाएगा। मनरेगा परिषद द्वारा मध्यप्रदेश राज्य इलेक्ट्रॉनिक्स विकास निगम लिमिटेड के माध्यम से ऐप का निर्माण किया गया है। अन्य किसी माध्यम से हितग्राही का चयन नहीं किया जाएगा। चयनित महिला हितग्राही के नाम पर भूमि नहीं होने की दशा में उस महिला के पति, पिता, ससुर और पुत्र की भूमि पर सहमति के आधार पर पौधरोपण किया जाएगा। 30 हजार से अधिक महिलाओं को मिलेगा लाभ “एक बगिया माँ के नाम’’ परियोजना अंतर्गत प्रदेश की 30 हजार से अधिक स्व-सहायता समूह की महिलाओं को लाभ मिलेगा। इनकी निजी जमीन पर 30 लाख से अधिक फलदार पौधे लगाएं जाएंगे, जो समूह की महिलाओं की आर्थिक तरक्‍की का आधार बनेंगे। परियोजना के अंतर्गत हितग्राहियों को पौधे, खाद और गड्‌ढे खोदने के साथ ही पौधों की सुरक्षा के लिए कटीले तार की फेंसिंग और सिंचाई के लिए 50 हजार लीटर का जल कुंड बनाने के लिए राशि प्रदान की जाएगी।  प्रत्येक ब्लॉक में 100 हितग्राहियों का किया जाएगा चयन “ एक बगिया मां के नाम” परियोजना अंतर्गत प्रत्येक ब्लॉक में न्यूनमत 100 हितग्राहियों का चयन किया जाएगा। चयनित पात्र महिलाओं को प्रशिक्षित किया जाएगा। प्रशिक्षण महिलाओं को वर्ष में दो बार दिया जाएगा। सॉफ्टवेयर बताएगा किस प्रजाति के पौधे के लिए है जमीन उपयोगी “एक बगिया माँ के नाम’’ परियोजना अंतर्गत पौधरोपण के लिए जमीन का चयन वैज्ञानिक पद्धति (सिपरी सॉफ्टवेयर) के माध्यम से किया जाएगा। जमीन चिन्हित होने के बाद सॉफ्टवेयर से भूमि का परीक्षण किया जाएगा। जलवायु के साथ ही किस जमीन पर कौन सा फलदार पौधा उपयुक्त है। पौधा कब और किस समय लगाया जाएगा। सिपरी सॉफ्टवेयर के माध्यम से यह पता लगाया जाएगा कि पौधों की सिंचाई के लिए पर्याप्त मात्रा में पानी का स्त्रोत कहां उपलब्ध है। जमीन के उपयोगी नहीं पाए जाने पर पौधरोपण का कार्य नहीं होगा। न्यूनतम आधा एकड़ अधिकतम 1 एकड़ जमीन होना अनिवार्य “ एक बगिया मां के नाम” परियोजना का लाभ लेने के लिए चयनित हुई समूह की महिला के पास बगिया लगाने के लिए भूमि भी निर्धारित की गई है। चयनित महिला के पास न्यूनतम आधा एकड़ या अधिकतम एक एकड़ जमीन होना अनिवार्य है। प्रति 25 एकड़ पर एक कृषि सखी होगी नियुक्त फलोद्यान की बगिया लगाने के लिए चयनित हितग्राहियों की सहायता के लिए कृषि सखी नियुक्त की जाएगी। ये कृषि सखी हितग्राहियों को खाद, पानी, कीटों की रोकथाम, जैविक खाद, जैविक कीटनाशक तैयार कराने और अंतर्वर्तीय फसलों की खेती के बारे में जानकारी देगी। प्रत्येक 25 एकड़ के फलदार पौधरोपण पर एक कृषि सखी नियुक्त होगी। ड्रोन-सैटेलाइट इमेज से होगी निगरानी, पर्यवेक्षण के लिए बनाया जाएगा डेश बोर्ड पौधरोपण का कार्य सही तरीके से हो रहा है या नहीं। पौधे कहा पर लगे है या नहीं। इसकी ड्रोन-सैटेलाइट इमेज से निगरानी भी की जाएगी। मनरेगा परिषद द्वारा पॉयलेट प्रोजेक्ट के तहत धार जिले की जनपद पंचायत बाग के ग्राम पंचायत बाग, बाणदा, घोटियादेव, पिपरियापानी, झाबा, चिकापोटी में इसका परीक्षण भी हो गया है। पर्यवेक्षण के लिए अलग से एक डेश बोर्ड भी बनाया जाएगा। साथ ही प्रदर्शन के आधार पर प्रथम 3 जिले, 10 जनपद पंचायत एवं 25 ग्राम पंचायतों को पुरस्कृत भी किया जाएगा। 15 जुलाई तक किया जाएगा हितग्राहियों का चयन “एक बगिया मां के नाम” परियोजना के लिए पात्र महिला हितग्राहियों के चयन की प्रक्रिया 15 जुलाई तक पूरी कर ली जाएगी। हितग्राही की भूमि का स्थल निरीक्षण उसका भौतिक सत्यापन, तकनीकी व प्रशासकीय स्वीकृति का कार्य 25 जुलाई तक किया जाएगा। पौधरोपण के लिए गड्‌ढे की खुदाई, तार फेंसिंग सहित पौधरोपण से संबंधित अन्य तैयारियां 14 अगस्त तक की जाएंगी। अभियान के रूप में पौधरोपण का कार्य 15 अगस्त से 15 सितंबर तक होगा।  

उच्च शिक्षा विभाग ने सत्र 2025-26 में, महाविद्यालयों में स्नातकोत्तर कक्षाओं में प्रवेश के लिए तिथि में की वृद्धि

भोपाल उच्च शिक्षा विभाग ने सत्र 2025-26 में, महाविद्यालयों में स्नातकोत्तर कक्षाओं में प्रवेश के लिए तिथि में वृद्धि की है। माननीय उच्च न्यायालय के आदेश के परिपालन में, उच्च शिक्षा विभाग द्वारा स्नातकोत्तर स्तर (PG) सत्र 2025-26 में ऑनलाइन प्रवेश अंतर्गत सीएलसी चरण के लिए अद्यतन समय सारणी जारी की गई है। जारी समय सारणी के अनुसार, सत्र 2025-26 में स्नातकोत्तर कक्षाओं में मेजर माइनर विषयों में एवं मेजर एवं माइनर विषय के अतिरिक्त अन्य विषय में प्रवेश लेने के इच्छुक विद्यार्थी, 7 से 10 जुलाई तक ऑनलाइन पंजीयन/आवेदन कर सकेंगे। पंजीकृत आवेदनों के दस्तावेजों का सत्यापन 7 से 11 जुलाई तक होगा। मेजर माइनर के अलावा अन्य विषयों में आवेदन करने वाले विद्यार्थियों को साक्षात्कार के दिनांक, स्थान एवं समय की सूचना 14 जुलाई को दी जाएगी। मेजर माइनर के अलावा अन्य विषयों में आवेदन करने वाले विद्यार्थियों के साक्षात्कार एवं पोर्टल पर अंकों की प्रविष्टि 16 से 17 जुलाई तक होगी। विद्यार्थियों को महाविद्यालयों में सीट का आवंटन 21 जुलाई को होगा। आवंटित महाविद्यालय में प्रवेश शुल्क का भुगतान 21 से 25 जुलाई तक किया जा सकेगा। आवंटित महाविद्यालय में शुल्क भुगतान की अंतिम तिथि तक प्रवेश शुल्क का भुगतान किए गए आवेदकों का ही प्रवेश मान्य होगा और प्रवेश शुल्क का भुगतान न होने की दशा में प्रवेश नहीं माना जाएगा।  

लाड़ली बहनों के खाते में रक्षाबंधन से पहले दो बार आएंगे पैसे, जानिए बड़ा अपडेट

भोपाल  मध्य प्रदेश सरकार की सबसे लोकप्रिय लाडली बहना योजना (Ladli Behna Yojana 26 Installment) की 26वीं किस्त का एमपी की करोड़ों महिलाएं बेसब्री से इंतजार कर रही हैं. बता दें कि इस बार महिलाओं को डबल खुशखबरी मिलने वाली है. जुलाई में न सिर्फ महिलाओं को शगुन के तौर पर अतिरिक्त पैसे मिलेंगे, बल्कि इस बार लाडली बहना योजना की सहायता राशि बढ़ाकर बहनों के खातों में ट्रांसफर की जाएगी. दो बार जारी की जाएगी लाड़ली बहना की राशि एमपी की बहनों को जुलाई में दो किस्तें  (Ladli Behna Yojana july 26th Installment)जारी की जाएंगी. वो कैसे? दरअसल, अगस्त में रक्षाबंधन के त्यौहार को देखते हुए मोहन सरकार जुलाई महीने में ही शगुन के तौर पर 250 रुपये की राशि जारी करने जा रही है. यानी महिलाओं को न सिर्फ 1250 रुपये मिलेंगे बल्कि 250 रुपये की अतिरिक्त राशि भी जारी की जाएगी. ऐसे में इस बार महिलाओं के खातों में कुल 1500 रुपये ट्रांसफर किए जाएंगे. बता दें कि करीब 1.27 करोड़ महिलाओं को 250 रुपये की राशि अलग से दी जाएगी. कब जारी की जाएगी लाड़ली बहना की 26वीं किस्त मिली जानकारी के मुताबिक, जुलाई के लिए लाडली बहना की 26वीं किस्त 10-15 जुलाई के बीच कभी भी जारी हो सकती है. हालांकि, एमपी सरकार की ओर से अभी तक कोई आधिकारिक अधिसूचना जारी नहीं की गई है. अब आप भी सोच रहे होंगे कि रक्षाबंधन की किस्त जुलाई में ही क्यों जारी की जा रही है? दरअसल, रक्षाबंधन का त्योहार 9 अगस्त को पड़ रहा है, इसलिए योजना की किस्त आमतौर पर 10-15 तारीख के बीच ट्रांसफर की जाती है. इस दौरान महिलाओं को रक्षाबंधन से पहले या त्योहार के दिन अतिरिक्त राशि का लाभ नहीं मिल पाता है, जिसके कारण लाडली बहना की अतिरिक्त राशि जुलाई में ही जारी की जाएगी. कब से मिलेंगे 1500 रुपए इस साल लाडली बहना योजना के तहत महिलाओं को बहुत फायदा होने वाला है. सबसे पहले तो जुलाई में उनके खाते में 1500 रुपए की बढ़ी हुई राशि ट्रांसफर की जाएगी. दूसरा, दिवाली से हर महीने ये तय राशि महिलाओं के खाते में ट्रांसफर की जाएगी. यानि दिवाली से हर महीने महिलाओं के खाते में 1500 रुपए ट्रांसफर किए जाएंगे, जिसे साल 2028 तक बढ़ाकर 3000 रुपए किए जाने का अनुमान है. अब इस साल ही अगस्त और सितंबर के महीने में 1250 रुपए की राशि बैंक खाते में ट्रांसफर की जाएगी. लाडली बहना योजना का नया रजिस्ट्रेशन कब से शुरू होगा? योजना से जुड़ा एक सवाल जो प्रदेश की हर बहन जानना चाहती है वो ये कि लाडली बहना योजना का नया रजिस्ट्रेशन कब शुरू होगा? आपको बता दें कि एमपी सरकार की तरफ से इस बारे में कोई जानकारी सामने नहीं आई है. लाडली बहना योजना रजिस्ट्रेशन पोर्टल 2023 यानी करीब डेढ़ से दो साल से बंद है. ऐसे में वो महिलाएं जो इन सालों में योजना की पात्र हो गई हैं या फिर रजिस्ट्रेशन से चूक गई हैं, उन्हें लाडली बहना योजना का नया रजिस्ट्रेशन पोर्टल खुलने का बेसब्री से इंतजार है.  खाते में पैसा आने में हो सकती है देरी मध्य प्रदेश में लाडली बहना योजना की 26वीं किस्त के पैसों के लिए 1.27 करोड़ महिलाओं को थोड़ा ज्यादा इंतजार करना पड़ सकता है। आमतौर पर सरकार की ओर से 10 से 15 तारीख के बीच 1250 रुपये की राशि महिलाओं के खाते में ट्रांसफर कर दी जाती है। मगर संभावना जताई जा रही है कि इस महीने जुलाई की किस्त में थोड़ी देरी हो सकती है। मुख्यमंत्री लाडली बहना योजना के अंतर्गत पात्र महिलाओं के खाते में हर महीने 1250 रुपये की राशि दी जाती है। अभी करीब 1.27 करोड़ महिलाएं इस योजना का लाभ उठा रही हैं। मुख्यमंत्री मोहन यादव यह भी ऐलान कर चुके हैं कि दिवाली से महिलाओं को हर महीने 1500 रुपये दिए जाएंगे और 2028 तक इसे धीरे-धीरे बढ़ाकर 3000 रुपये महीना कर दिया जाएगा। ऐसी जानकारी मिल रही है कि जुलाई महीने की किस्त की तारीख में इस बार थोड़ा फेरबदल हो सकता है। क्या है वजह दरअसल अगले महीने रक्षा बंधन है और मुख्यमंत्री मोहन यादव ऐलान कर चुके हैं कि इस मौके पर लाडली बहनों को 250 रुपये की अतिरिक्त राशि दी जाएगी। रक्षा बंधन 9 अगस्त को है, ऐसे में इस अतिरिक्त राशि को जुलाई में ही खाते में भेजने की तैयारी चल रही है। जानकारी मिल रही है कि रक्षा बंधन का 'शगुन' देने की वजह से इस बार थोड़ी देरी हो सकती है। यह भी माना जा रहा है कि जुलाई में एक साथ खाते में 1500 रुपये नहीं आएंगे बल्कि 1250 रुपये और 250 रुपये की दो किस्तों में पैसा ट्रांसफर किया जाएगा। रक्षा बंधन की वजह से जुलाइ महीने की किस्त की तारीख थोड़ा आगे बढ़ सकती है। हालांकि अभी तक इस बारे में कोई भी आधिकारिक घोषणा नहीं हुई है। अप्रैल से बदल गई थी तारीख लाडली बहना योजना का पैसा पहले 7 से 10 तारीख के बीच आता था, लेकिन फंड की कमी से निपटने और केंद्र से मिलने वाली मदद के इस्तेमाल के लिए अप्रैल से इस तारीख को आगे बढ़ाकर 10 से 15 तारीख कर दिया गया। केंद्र सरकार हर महीने की 10 तारीख को टैक्स डेवोल्यूशन का पैसा आता है। ऐसे में सरकार इस फंड का इस्तेमाल कर लाडली बहना योजना की लाभार्थियों के खाते में पैसा भेज रही है। अप्रैल में सीएम मोहन यादव ने 16 तारीख को महिलाओं के खाते में पैसा ट्रांसफर किया था। जबकि अगले महीने 15 मई को लाभार्थी महिलाओं को पैसा मिल गया था। जून में 13 तारीख को पैसा मिलना था, लेकिन विमान हादसे की वजह से इसे टालकर 16 जून कर दिया गया था। जुलाई में मिलेंगे 1500 रुपये जुलाई महीने में महिलाओं को 1250 नहीं बल्कि 1500 रुपये मिलेंगे। 250 रुपये रक्षा बंधन का शगुन इसमें शामिल है। हालांकि अगले दो महीने खाते में 1250 रुपये ही आएंगे। अक्टूबर से हर महीने 1500 रुपये देने का ऐलान सरकार की ओर से किया जा चुका है।

हीरा उगलने वाली छतरपुर की धरती में अब एक और खनिज का विशाल भंडार मिला, मध्य प्रदेश की किस्मत चमक जाएगी

छतरपुर   प्राकृतिक संसाधनों से मध्य प्रदेश की झोली जल्द ही भरने जा रही है. केन्द्र सरकार की मदद से मध्यप्रदेश को कोलबेड मीथेन की खोज में बड़ी सफलता हाथ लगी है. छतरपुर व दमोह जिले के इलाके में प्राकृतिक गैस के लिए कोलबेड मीथेन का बड़ा भंडार मिला है. छतरपुर और दमोह जिले के इस 462 वर्ग किलोमीटर एरिया में जल्द ही खनन की तैयारी की जा रही है. ONGC को खनन की जिम्मेदारी मिली खनन का काम देश की नवरत्न कंपनियों में शामिल ओएनजीसी यानी ऑयल एंड नेचुरल गैस कॉर्पोरेशन द्वारा किया जाएगा. इसको लेकर तैयारियां शुरू कर दी गई हैं. अधिकारियों के मुताबिक खनन के लिए ओएनजीसी को प्रोविनजल लीज आवंटित कर दी गई है. कोल बेड मीथेन का मध्य प्रदेश बड़ा उत्पादक मध्यप्रदेश में प्राकृतिक गैस के भंडार के कई बड़े संभावित क्षेत्रों को लेकर लंबे समय से खोज चल रही है. कोलबेड मीथेन का मध्य प्रदेश बड़ा उत्पादक रहा है. देश का 40 फीसदी कोलबेड मीथेन का उत्पादक मध्यप्रदेश है. मध्य प्रदेश में अभी यह 40 फीसदी की पूति सिर्फ सोहागपुर के दो ब्लॉक ईस्ट और वेस्ट से ही हो रही है. इन स्थानों पर रिलायंस कंपनी के 300 कुएं हैं, जिससे गैस निकाली जा रही है. छतरपुर और दमोह करेगा मध्य प्रदेश की जरूरत पूरी रिलायंस की सब्सिडियरी कंपनी रिलायंस गैस पाइपलाइन लिमिटेड यहां से उत्तर प्रदेश के फूलपुर तक 302 किलोमीटर की एक पाइपलाइन भी ऑपरेट करती है. अभी इन कुओं से 234.37 मिलियन मीट्रिक स्टैंडर्ड क्यूबिक मीटर सीबीएम का उत्पादन हो रहा है. मध्यप्रदेश के छतरपुर और दमोह में कोल बेडमीथेन के उत्पादन के बाद मध्यप्रदेश बड़े स्तर पर इसकी जरूरत को पूरा करेगा. विन्ध्य, सतपुडा के अलावा नर्मदा वैली में संभावनाएं मध्यप्रदेश के विन्ध्य, सतपुडा के अलावा नर्मदा वैली में पेट्रोलियन और प्राकृतिक गैस के बड़े भंडार की संभावनाएं जताई जा रही हैं. 2017 में हाइड्रोकार्बन रिसोर्स असिस्मेंट की एक स्टडी भी हुई थी, जिसमें संभावना जताई गई थी कि इन क्षेत्रों में प्राकृतिक गैस के भंडार मौजूद है. अनुमान है कि इन क्षेत्रों में 5 लाख 55 हजार 254 मिलियन टन हाइड्रोकार्बन का भंडार मौजूद है. हालांकि अब खोज के बाद छतरपुर-दमोह में खनन की तैयारियां शुरू की जा रही हैं. खनिज संसाधन विभाग के प्रमुख सचिव उमाकांत उमराव के मुताबिक "इसको लेकर केन्द्र से अनुमतियां मिल गई हैं और इसके तहत प्रोविजनल लीज दी गई है. कुछ और प्रोसेस बची है, इसे भी जल्द पूरा कर लिया जाएगा." शहडोल व उमरिया जिले में भी ओनजीसी को लाइसेंस मध्यप्रदेश के छतरपुर-दमोह के अलावा शहडोल, उमरिया जिले में में पेट्रोलियम एक्सप्लोर करने के लिए ओएनजीसी को पहले ही लाइसेंस दिया गया है. इसके अलावा बैतूल, छिंदवाड़ा, नर्मदापुर में भी एनवेनियर पेट्रोडाउन लिमिटेड को पेट्रोलियन एक्सप्लोरेशन लाइसेंस दिया गया है. इन दोनों ही स्थानों पर काम भी शुरू हो गया है. इन दोनों स्थानों पर अगले 20 सालों में एक्सप्लोरेशन पर करीबन साढे 8 हजार करोड़ रुपए खर्च होगा. क्या है कोलबेड मीथेन गैस, किस काम आती है गौरतलब है कि कोलबेड मीथेन अपरंपरागत गैस का बड़ा स्रोत है. कोलबेड मीथेन कोयले की चट्टानों में पाई जाती है. इसे चट्टानों में ड्रिल करके निकाला जाता है. इसके लिए चट्टानों के नीचे ग्रिल करके भूमिगत जल को हटाकर इकट्ठा किया जाता है. कोयला भंडार के मामले में भारत दुनिया में पांचवें स्थान पर है.  हीरा उगलने वाली छतरपुर की धरती में अब एक और खनिज का विशाल भंडार मिला छतरपुर जिले के बक्सवाहा के जंगलों में एशिया का सबसे अच्छा हीरा पाया गया. इसके बाद यहां हीरा निकालने के लिए सरकार ने पूरी तैयारियां कर ली हैं. इसी जंगल में अब फॉस्फेट की चट्टानें मिली हैं. इन चट्टानों में बहुतायात में फॉस्फोराइट खनिज है. फिलहाल 57 लाख मीट्रिक टन रॉक फॉस्फेट के भंडार का पता चला है. हीरा के बाद इस खनिज के मिलने के बाद छतरपुर जिला मध्य प्रदेश में नंबर 1 पर पहुंच जाएगा. खाद बनाने के लिए फॉस्फोराइट का इस्तेमाल बता दें कि उर्वरक बनाने के लिए फॉस्फोराइट महत्वपूर्ण कच्चा माल माना जाता. खासकर, डीएपी खाद बनाने के लिए इसका उपयोग होता है. इस खोज से न केवल छतरपुर जिले का विकास होगा, बल्कि आने वाले दिनों में किसानों को खाद की उपलब्धता और उसकी कीमत में भी राहत मिलने की संभावना है. रॉक फॉस्फेट के भंडार की खोज के बाद सरकार ने खनन की अनुमति दे दी है. जल्द ही इस पर काम शुरू होने की उम्मीद है. इससे पहले बक्सवाहा में हीरा भी प्रचुर मात्रा में मिला गौरतलब है कि छतरपुर जिले में खनिज सम्पदा का भंडार है. बक्सवाहा इलाके में हीरा खदानें शुरू होने जा रही हैं. अब रॉक फॉस्फेट का अकूत भंडार मिलने से छतरपुर ही नहीं बल्कि मध्य प्रदेश में रोजगार के नए अवसर बनेंगे. मध्य प्रदेश सरकार का खजाना छतरपुर की खनिज संपदा भर देगी. छतरपुर जिला मुख्यालय से 100 किलोमीटर दूर बड़ामलहरा अनुविभाग के बकस्वाहा तहसील इलाके के सूरजपुरा में फॉस्फोराइट पत्थर की खोज हुई है.  बक्सवाहा के सूरजपुरा में सरकार ने दी खनन की मंजूरी भू-वैज्ञानिकों ने सर्वेक्षण में जिले के सूरजपुरा व इससे लगे पल्दा, सगौरिया, गरदौनियां में 1070 हेक्टेयर में फॉस्फोराइट का विशाल भंडार पाया है. अब इस भंडार पर हाल ही में केंद्र सरकार ने खनन की मंजूरी दे दी है. इससे यहां उद्योग स्थापित होने की संभावनाएं बढ़ गई हैं. केंद्र सरकार के खनन मंत्रालय ने इस क्षेत्र में खनन कार्य के लिए लीज स्वीकृत कर दी है. यह लीज सनफ्लैग आयरन एंड स्टील कंपनी को दी गई है. इस कंपनी को आगामी 3 साल तक खनन करने की अनुमति दी गई है.  क्या होता है फॉस्फोराइट महाराजा छत्रसाल बुंदेलखंड विश्वविद्यालय के भूगर्भ विभाग में पदस्थ एचओडी डॉ. पीके जैन ने बताया "फॉस्फोराइट एक मिनरल होता है, जिसका स्रोत रॉक फॉस्फेट चट्टान होती है. इसी रॉक फॉस्फेट चट्टान में फॉस्फोराइट मिनरल डिपॉजिट होते हैं. छतरपुर जिले के बक्सवाहा के आसपास के गांव में इस खनिज तत्व के खोज की पुष्टि हुई है. बकस्वाहा तहसील के सूरजपुरा और आसपास के गांवों में फॉस्फोराइट खनिज तत्व डिपोजिट हैं. यह एक सेडिमेंट्री रॉक (अवसादी चट्टान) हैं और फॉस्फोराइट इसका प्रमुख स्रोत माना जाता है.  फास्फोराइट का कैसे होता है उपयोग छतरपुर … Read more

X-गार्ड जैमिंग डिकॉय के जरिए भारत ने कैसे पाकिस्तान को बनाया मूर्ख …US फाइटर पायलट का खुलासा

नई दिल्ली भारत ने ऑपरेशन सिंदूर के दौरान पाकिस्तान को ऐसा चकमा दिया कि उसकी सारी पोल खुल गई. इस ऑपरेशन ने भारतीय वायुसेना (IAF) की उन्नत इलेक्ट्रॉनिक युद्ध (Electronic Warfare – EW) रणनीतियों को दुनिया के सामने ला दिया. पूर्व अमेरिकी F-15E स्ट्राइक ईगल और F-16 थंडरबर्ड पायलट रयान बोडेनहाइमर ने IAF की रणनीतियों को "अब तक का सबसे बेहतरीन स्पूफिंग और डिसेप्शन" (भ्रम और धोखा) बताया. उन्होंने इस सफलता का श्रेय राफेल जेट के X-गार्ड जैमिंग डिकॉय और SPECTRA EW सूट को दिया, जिसने पाक की PL-15E मिसाइलों को धोखा दिया. ऑपरेशन सिंदूर ऑपरेशन सिंदूर 7 मई 2025 को शुरू हुआ, जब भारतीय वायुसेना ने 22 अप्रैल 2025 को जम्मू-कश्मीर के पहलगाम में हुए आतंकी हमले का जवाब दिया, जिसमें 26 नागरिक मारे गए थे. इस ऑपरेशन में IAF ने पाकिस्तान और पाकिस्तान अधिकृत कश्मीर (PoK) में नौ आतंकी ठिकानों को निशाना बनाया. राफेल, सुखोई Su-30 MKI और मिराज 2000 जेट्स ने SCALP क्रूज मिसाइलों और स्पाइस-2000 बमों का उपयोग कर सटीक हमले किए, बिना भारतीय हवाई क्षेत्र छोड़े. पाकिस्तान ने दावा किया कि उसने पांच भारतीय जेट्स, जिनमें तीन राफेल शामिल थे, को मार गिराया. लेकिन भारतीय सूत्रों और अंतरराष्ट्रीय विशेषज्ञों ने इन दावों को खारिज करते हुए कहा कि ये नष्ट हुए डिकॉय (X-गार्ड) थे, न कि असली राफेल जेट्स. इस ऑपरेशन में IAF की इलेक्ट्रॉनिक युद्ध तकनीकों ने पाकिस्तान वायुसेना (PAF) को पूरी तरह भ्रमित कर दिया. X-गार्ड जैमिंग डिकॉय: तकनीकी जानकारी X-गार्ड एक इजरायली निर्मित फाइबर-ऑप्टिक टोड डिकॉय (towed decoy) है, जिसे राफेल जेट्स के SPECTRA इलेक्ट्रॉनिक युद्ध सूट के साथ एकीकृत किया गया है. यह 30 किलोग्राम का उपकरण राफेल जेट के पीछे तार द्वारा खींचा जाता है. दुश्मन के रडार और मिसाइलों को धोखा देने के लिए डिज़ाइन किया गया है. 360 डिग्री जैमिंग सिग्नल: X-गार्ड 360 डिग्री के दायरे में जैमिंग सिग्नल भेजता है, जो दुश्मन के रडार और मिसाइलों के एक्टिव सीकर्स को भ्रमित करता है. यह रडार सिग्नेचर को नकली बनाता है, जिससे ऐसा लगता है कि यह एक असली जेट है. AI-संचालित तकनीक: X-गार्ड में आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस (AI) का उपयोग होता है, जो रडार सिग्नल के डॉप्लर शिफ्ट (Doppler Shift) और सिग्नेचर की कॉपी करता है.  यह दुश्मन के रडार को भ्रमित करने के लिए रीयल-टाइम में सिग्नल को बदलता रहता है, जिससे मिसाइलें असली जेट के बजाय डिकॉय को निशाना बनाती हैं. डिजिटल रेडियो फ्रीक्वेंसी मेमोरी (DRFM): X-गार्ड डिजिटल रेडियो फ्रीक्वेंसी मेमोरी (DRFM) तकनीक का उपयोग करता है, जो दुश्मन के रडार सिग्नल को रिकॉर्ड और हेरफेर करता है. यह झूठे लक्ष्य (false targets) बनाता है, जिससे दुश्मन का रडार और मिसाइल सिस्टम गलत दिशा में भटक जाते हैं. एंटी-मिसाइल सुरक्षा: X-गार्ड हवा से हवा में मार करने वाली मिसाइलों (जैसे PL-15E) और सतह से हवा में मार करने वाली मिसाइलों (SAMs) दोनों से रक्षा करता है. यह राफेल को मिसाइलों के नो-एस्केप ज़ोन (जहां मिसाइल से बचना मुश्किल होता है) से बाहर रखता है. वज़न और डिज़ाइन: X-गार्ड का वज़न केवल 30 किलोग्राम है, जिससे यह हल्का और प्रभावी है. इसे फाइबर-ऑप्टिक केबल के माध्यम से जेट से जोड़ा जाता है, जो इसे तेज़ गति पर भी स्थिर रखता है. SPECTRA EW सूट: राफेल की रक्षा प्रणाली राफेल जेट का SPECTRA (Système de Protection et d’Évitement des Conduites de Tir du Rafale) इलेक्ट्रॉनिक युद्ध सूट इसकी सबसे बड़ी ताकत है. यह थेल्स और MBDA द्वारा विकसित एक प्रणाली है, जो राफेल को दुश्मन के रडार और मिसाइलों से बचाने के लिए डिज़ाइन की गई है. इसकी प्रमुख विशेषताएं हैं… थ्रेट डिटेक्शन: SPECTRA में एक्टिव और पैसिव सेंसर होते हैं, जो 360 डिग्री में रडार और मिसाइल सिग्नल का पता लगाते हैं. यह लो प्रोबेबिलिटी ऑफ इंटरसेप्ट (LPI) रडार डिटेक्शन का उपयोग करता है, जिससे दुश्मन को इसका पता लगाना मुश्किल होता है. जैमिंग और काउंटरमेज़र्स: SPECTRA दुश्मन के रडार और मिसाइलों को भ्रमित करने के लिए चैफ, फ्लेयर्स और डायरेक्टेड जैमिंग का उपयोग करता है. यह एडवांस एल्गोरिदम के साथ रडार सिग्नल को विश्लेषण करता है और तुरंत काउंटरमेज़र्स लागू करता है. एडवांस्ड रडार: SPECTRA राफेल के RBE2-AA एक्टिव इलेक्ट्रॉनिकली स्कैन्ड ऐरे (AESA) रडार के साथ मिलकर काम करता है, जो 145 किमी की दूरी पर 40 लक्ष्यों को ट्रैक कर सकता है. डेटा लिंक और नेटवर्क-सेंट्रिक युद्ध: SPECTRA राफेल को अन्य जेट्स, AWACS (Airborne Warning and Control System) और ग्राउंड स्टेशनों के साथ रीयल-टाइम डेटा साझा करने की अनुमति देता है, जिससे समन्वित हमले संभव होते हैं.  ऑपरेशन सिंदूर में भारतीय रणनीति ऑपरेशन सिंदूर में भारतीय वायुसेना ने कई उन्नत रणनीतियों का उपयोग किया, जो इसकी सफलता का कारण बनीं.  मल्टी-स्पेक्ट्रम इलेक्ट्रॉनिक युद्ध: IAF ने DRFM जैमिंग, GPS स्पूफिंग और रडार क्रॉस-सेक्शन मैनिपुलेशन का उपयोग किया. इससे पाकिस्तानी रडार और मिसाइल सिस्टम की सेंसर फ्यूजन और टारगेटिंग एल्गोरिदम बाधित हो गए. राफेल और Su-30 MKI जेट्स ने EL/M-8222 जैमिंग पॉड्स और तरंग रडार वॉर्निंग रिसीवर का उपयोग किया, जिसने PL-15E मिसाइलों के डेटा लिंक और AESA सीकर्स को बाधित किया. X-गार्ड डिकॉय की भूमिका: X-गार्ड ने नकली रडार सिग्नेचर बनाकर पाकिस्तानी J-10C और JF-17 जेट्स को भ्रमित किया. पाकिस्तान ने दावा किया कि उसने राफेल जेट्स को मार गिराया, लेकिन भारतीय और अंतरराष्ट्रीय सूत्रों ने पुष्टि की कि ये X-गार्ड डिकॉय थे. X-गार्ड ने PL-15E मिसाइलों के एक्टिव सीकर्स को गलत लक्ष्य की ओर मोड़ दिया, जिससे मिसाइलें असली जेट्स के बजाय डिकॉय को निशाना बनाती रहीं. लंबी दूरी की सटीक हमले: राफेल जेट्स ने SCALP क्रूज मिसाइलों (450 किमी रेंज) और HAMMER बमों (70 किमी रेंज) का उपयोग किया, जो स्टील्थ और जैम-प्रतिरोधी हैं. ये हथियार भारतीय हवाई क्षेत्र से लॉन्च किए गए, जिससे पायलटों और जेट्स को जोखिम कम हुआ. S-400 और आकाश सिस्टम: भारत की S-400 और आकाश सतह से हवा में मार करने वाली मिसाइल प्रणालियों ने पाकिस्तानी जेट्स को भारतीय हवाई क्षेत्र में घुसने से रोका. इन प्रणालियों ने पाकिस्तानी J-10C और JF-17 जेट्स को लंबी दूरी से ही मिसाइलें दागने के लिए मजबूर किया, जिससे उनकी सटीकता कम हो गई. पाकिस्तान की PL-15E मिसाइल और उसकी विफलता पाकिस्तान ने ऑपरेशन सिंदूर में अपनी J-10C और JF-17 ब्लॉक III जेट्स से PL-15E मिसाइलों का उपयोग किया, जो चीन की … Read more

स्टील्थ विमान जितनी बड़ी ताकत, उतनी गोपनीय तकनीक, स्वदेशी एडवांस्ड मीडियम कॉम्बैट एयरक्राफ्ट बना रहा भारत

तिरुवनंतपुरम  दुनिया के सबसे आधुनिक लड़ाकू विमानों में से एक ब्रिटिश रॉयल नेवी का F-35B 14 जून को तिरुवनंतपुरम में इमरजेंसी लैंडिंग करने के लिए मजबूर हो गया। इससे एक अनोखी स्थिति पैदा हो गई। यह घटना वैश्विक सैन्य तकनीक के समीकरणों को बदल सकती है। अब, लगभग तीन हफ्ते बाद ब्रिटेन की इंजीनियरिंग टीम एयर इंडिया के एमआरओ (Maintenance, Repair and Overhaul-MRO) हैंगर में मरम्मत का काम शुरू कर रही है। इस काम में इस विमान की अमेरिकी निर्माता कंपनी के इंजीनियर भी योगदान देने के लिए तिरुवनंतपुरम पहुंचे हैं। अमेरिकी और ब्रिटिश विशेषज्ञों की यह एक नई श्रृंखला है। ब्रिटिश रॉयल एयर फोर्स का एयरबस ए400ओम एटलस इन्हें उतारकर तुरंत लौट चुका है। इससे पहले कितने ही इंजीनयर आए और विमान को उड़ने लायक बनाने में नाकाम होकर अपने-अपने देश लौट गए। भारत शुरू से चाहता था कि इस फाइटर जेट को मेंटेनेंस हैंगर में ले जाकर आराम से मरम्मत की कोशिश की जाए। लेकिन, अभी तक ब्रिटिश नेवी ऐसा नहीं करने के लिए अड़ी हुई थी। लेकिन, आखिरकार उन्हें भारत की बात मानने के लिए मजबूर होना पड़ गया। बहरहाल,इस वजह से भारत एक दुर्लभ तकनीकी परिस्थितियों के बीच खड़ा है। स्टील्थ फाइटर जेट की दुर्लभ खराबी और तकनीकी अवसर F-35B में आई अचानक तकनीकी खराबी ब्रिटेन और अमेरिका के लिए एक बड़ी चुनौती साबित हो रही है। लेकिन भारत के लिए यह एक सुनहरा अवसर साबित हो सकता है। यह विमान 110 मिलियन डॉलर से अधिक का है। इसे कड़ी सुरक्षा में रखा जाता है। यह तब भी देखने को मिला, जब एयरपोर्ट के वीआईपी पार्किंग से इसे एमआरओ हैंगर में खींचकर ले जाया जा रहा था। अब यह अत्याधुनिक अमेरिकी लड़ाकू विमान भारतीय MRO तकनीशियनों और ग्राउंड टीमों की नजरों के सामने है। भले ही जानबूझकर ऐसा न किया जाए, लेकिन संयोग से ऐसी परिस्थितियां पैदा हुई हैं कि इस स्टील्थ जेट की बनावट, कूलिंग सिस्टम, कोटिंग तकनीक और सेंसर अलाइनमेंट को देखकर भारतीय इंजीनियरों को भी बहुत कुछ सीखने को मिल सकता है। उन्हें अत्याधुनिक अमेरिकी स्टील्थ टेक्नोलॉजी के बारे में नई जानकारियां मिल सकती हैं। स्वदेशी एडवांस्ड मीडियम कॉम्बैट एयरक्राफ्ट बना रहा भारत यह भारत के लिए बहुत महत्वपूर्ण है। भारत अपना पांचवीं पीढ़ी का लड़ाकू विमान, एडवांस्ड मीडियम कॉम्बैट एयरक्राफ्ट (AMCA) बना रहा है। रक्षा अनुसंधान और विकास संगठन (DRDO) वर्षों से स्टील्थ तकनीक पर काम कर रहा है। लेकिन, असली जानकारी और तुलनात्मक डिजाइनिंग के लिए प्रोटोटाइप की कमी के कारण काम में मुश्किलें आती हैं। भारत में F-35B की मौजूदगी से यह देखने को मिलेगा कि एक असली स्टील्थ जेट की तकनीक अंदर से कैसी होती है, उसकी मरम्मत कैसे होती है, और उसे कैसे सर्विस किया जाता है। स्टील्थ विमान जितनी बड़ी ताकत, उतनी गोपनीय तकनीक F-35B कोई साधारण लड़ाकू विमान नहीं है। इसे लॉकहीड मार्टिन जैसी अमेरिकी कंपनी ने बनाया है। इसे नाटो (NATO) के कई देश इस्तेमाल करते हैं। यह रडार से बचने वाली स्टील्थ तकनीक, सुपरसोनिक गति और आधुनिक सेंसरों वाली अत्याधुनिक लड़ाकू मशीन है। ब्रिटिश रॉयल नेवी की ओर से इस्तेमाल की जाने वाली इसकी वर्टिकल टेकऑफ और लैंडिंग (VTOL) क्षमता इसे और भी खास बनाती है। इसकी मरम्मत और समस्या का समाधान बहुत सावधानी से किया जाता है। इसलिए अभी तक बड़े-बड़े इंजीनियर इसे ठीक करने में नाकाम रहे हैं और न ही इसे किसी बड़े विमान से उठाकर ले जाने में सक्षम हो पाए हैं। अमेरिका और यूके के इंजीनियरों को क्यों डालने पड़े'हथियार' पहले कभी ऐसा नहीं हुआ कि कोई F-35B किसी दूसरे देश में हफ्तों तक मरम्मत के लिए बेबस फंसा रहा हो। आमतौर पर, ऐसे विमानों की मरम्मत तुरंत कड़ी सुरक्षा में की जाती है या उन्हें सुरक्षित बेस पर ले जाया जाता है। भारत में, एक कमर्शियल MRO सुविधा में मरम्मत करने के लिए तैयार होने का फैसला एक बड़ा बदलाव है। यह दिखाता है कि यूके और अमेरिका के पास कोई और विकल्प नहीं था। F-35B केस भारत के लिए तकनीकी और कूटनीतिक जीत भारत ने अबतक इस स्थिति को बहुत ही समझदारी से संभाला है। इससे पता चलता है कि भारत का वैश्विक स्तर पर कितना प्रभाव बढ़ गया है। भारत ने इस विमान के बारे में कोई शोर नहीं मचाया। भारतीय अधिकारियों ने ब्रिटिश इंजीनियरों को बिना किसी परेशानी के काम करने दिया और हर संभव सहयोग किया है। यूके ने भारत को 'निरंतर समर्थन और सहयोग' के लिए धन्यवाद भी दिया है। इस सद्भावना से भारत और यूके के बीच रक्षा सहयोग और बढ़ सकता है। इससे पता चलता है कि भारत के तकनीकी ढांचे और काम करने के तरीके पर भरोसा किया जा सकता है। इससे भविष्य में रक्षा उत्पादन और विमान रखरखाव में संयुक्त उद्यम स्थापित किए जा सकते हैं। अनजाने में ही सही, लेकिन तकनीक के क्षेत्र में बेहतर मौका हालांकि, भारत को इस फाइटर जेट के सिस्टम तक पूरी पहुंच नहीं मिलेगी, और ब्रिटेन संवेदनशील चीजों को बचाने के लिए पूरी सावधानी बरतेगा, लेकिन आसपास काम करने वाले भारतीय इंजीनियरों को जेट के निर्माण, थर्मल शील्डिंग, रडार-एब्सॉर्बिंग मटेरियल या सेंसर लेआउट के बारे में कुछ जानकारी मिल सकती है। DRDO के वैज्ञानिकों और HAL (Hindustan Aeronautics Limited) जैसी एयरोस्पेस कंपनियों के लिए, यह घटना उनके रिसर्च या सिमुलेशन के आधार पर बनाए गए विचारों को सही साबित कर सकती है। कम से कम जानकारी मिलने से भी भारत के स्टील्थ जेट की डिजाइन को बेहतर बनाने में मदद मिल सकती है। खासकर मटेरियल इंजीनियरिंग, वजन का संतुलन, इंजन कूलिंग और एयरफ्रेम रखरखाव के बारे में जानकारी मिल सकती है। "F-35B की आपातकालीन लैंडिंग और इसके बाद हुई मरम्मत से भारत को मिलने वाले तकनीकी लाभों और भविष्य की रक्षा क्षमताओं पर आपकी क्या राय है? क्या यह घटना भारत के लिए वाकई एक सुनहरा अवसर है, या इसके सीमित लाभ ही हैं? अपनी राय हमें कमेंट बॉक्स में ज़रूर बताएँ! लॉग इन करें और अपनी प्रतिक्रिया हिंदी या अंग्रेज़ी में साझा करें।